धनतेरस के दिन विविध वस्तुओं के खरीदने के पीछे छुपे हैं खास कारण, जानिए

धन्वन्तरि सागर मंथन से उत्पन्न हुए थे

जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थीं, उसी प्रकार भगवान धन्वन्तरि भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए थे।

स्वस्थ और लम्बी आयु

देवी लक्ष्मी हालांकि धन देवी हैं परन्तु उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए आपको स्वस्थ और लम्बी आयु भी चाहिए।

दीपामालाएं

यही कारण है कि दीपावली के दो दिन पहले से ही यानी धनतेरस से ही दीपामालाएं सजने लगती हैं।

धन्वन्तरि का जन्म

कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धन्वन्तरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है।

कलश लेकर हुए थे प्रकट

धन्वन्तरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है।

13 गुणा वृद्धि

कहीं-कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है।

खेतों में बोते हैं

इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।

चांदी खरीदने की भी प्रथा

धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है। अगर सम्भव हो तो कोई भी बर्तन खरीदें।

चन्द्रमा का प्रतीक

इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है।

जो स्वस्थ है वही है सुखी

संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है सुखी है और वही सबसे धनवान है।

चिकित्सा के देवता

भगवान धन्वन्तरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं, उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना की जाती है।

पूजा हेतु मूर्ति

लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी-गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हैं।

समुद्र मंथन से उत्पन्न

जिस प्रकार लक्ष्मीजी समुद्र मंथन से उत्पन्न हुई थीं, उसी प्रकार भगवान धन्वन्तरि धन त्रयोदशी के दिन अमृत कलश के साथ समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए थे।

धनतेरस से ही दीप प्रज्ज्वलित?

दीपावली के दो दिन पहले से ही यानी धनतेरस से ही दीप प्रज्ज्वलित करने का प्रचलन भी है।

व्यय के हिसाब से बहुत लाभकारी

जैसा कि अभी बताया गया कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही भगवान धन्वन्तरि का जन्म हुआ था, इसलिए इस तिथि को धनतेरस के रूप में जाना जाता है तथा व्यय के हिसाब से बहुत लाभकारी भी है।

बर्तन खरीदने की परंपरा

भगवान धन्वन्तरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परंपरा है। यदि चांदी का नहीं खरीद सकते तो कुछ कुछ अवश्य खरीदें।

चांदी की वस्तु

कहीं-कहीं लोकमतानुसार कहा जाता है कि इस दिन बर्तन, चांदी की वस्तु आदि की खरीदारी करने से उसमें तेरह गुना वृद्धि होती है। इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं।

क्यारियों में भी बोते हैं?

दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने खेतों में बोते हैं। कुछ लोग क्यारियों में भी बोते हैं। धनिया स्वास्थ्य के लिए उत्तम तो होता ही है, इसे स्वाद को बढ़ाने वाला भी माना गया है।

शीतलता के लिए

जैसा कि हम जानते हैं धनतेरस के दिन चांदी के बर्तन या जेवर खरीदने का भी प्रचलन है। माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है, जो शीतलता प्रदान करता है और इसी दिन चन्द्र का हस्त नक्षत्र भी है।

धनतेरस की पावन कथा

उत्तरी भारत में कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतेरस का पर्व पूरी श्रद्धा विश्वास के साथ मनाया जाता है। धन्वन्तरि के अलावा इस दिन, देवी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की भी पूजा करने की मान्यता है।

दूसरी कहानी

इस दिन को मनाने के पीछे धन्वन्तरि के जन्म लेने की कथा के अलावा, दूसरी कहानी भी प्रचलित है। कहा जाता है कि एक समय भगवान विष्णु मृत्युलोक में विचरण करने के लिए रहे थे, तब लक्ष्मी जी ने भी उनसे साथ चलने का आग्रह किया।

भगवान विष्णु के साथ भूमंडल

तब विष्णु जी ने कहा कि यदि मैं जो बात कहूं तुम अगर वैसा ही मानो तो फिर चलो। तब लक्ष्मी जी उनकी बात मान गईं और भगवान विष्णु के साथ भूमंडल पर गईं। कुछ देर बाद एक जगह पर पहुंचकर भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी से कहा कि जब तक मैं आऊं तुम यहां ठहरो।

लक्ष्मी के मन में कौतूहल

मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं, तुम उधर मत आना। विष्णुजी के जाने पर लक्ष्मी के मन में कौतूहल जागा कि आखिर दक्षिण दिशा में ऐसा क्या रहस्य है जो मुझे मना किया गया है और भगवान स्वयं चले गए

लक्ष्मी भी पीछे-पीछे चलीं

लक्ष्मी जी से रहा गया और जैसे ही भगवान आगे बढ़े लक्ष्मी भी पीछे-पीछे चल पड़ीं। कुछ ही आगे जाने पर उन्हें सरसों का एक खेत दिखाई दिया जिसमें खूब फूल लगे थे। सरसों की शोभा देखकर वह मंत्रमुग्ध हो गईं और फूल तोड़कर अपना श्रृंगार करने के बाद आगे बढ़ीं।

विष्णु जी आए

आगे जाने पर एक गन्ने के खेत से लक्ष्मी जी गन्ने तोड़कर रस चूसने लगीं। उसी क्षण विष्णु जी आए और यह देख लक्ष्मी जी पर नाराज होकर उन्हें शाप दे दिया कि मैंने तुम्हें इधर आने को मना किया था, पर तुम मानी और किसान की चोरी का अपराध कर बैठी।

12 वर्ष तक सेवा का श्राप

अब तुम इस अपराध के जुर्म में इस किसान की 12 वर्ष तक सेवा करो। ऐसा कहकर भगवान उन्हें छोड़कर क्षीरसागर चले गए। तब लक्ष्मी जी उस गरीब किसान के घर रहने लगीं। एक दिन लक्ष्मीजी ने उस किसान की पत्नी से कहा कि तुम स्नान कर पहले मेरी बनाई गई इस देवी लक्ष्मी का पूजन करो, फिर रसोई बनाना, तब तुम जो मांगोगी मिलेगा।

धन-धान्य से पूर्ण

किसान की पत्नी ने ऐसा ही किया। पूजा के प्रभाव और लक्ष्मी की कृपा से किसान का घर दूसरे ही दिन से अन्न, धन, रत्न, स्वर्ण आदि से भर गया। लक्ष्मी ने किसान को धन-धान्य से पूर्ण कर दिया। किसान के 12 वर्ष बड़े आनंद से कट गए। फिर 12 वर्ष के बाद लक्ष्मीजी जाने के लिए तैयार हुईं।

चंचला लक्ष्मी

विष्णुजी लक्ष्मीजी को लेने आए तो किसान ने उन्हें भेजने से इंकार कर दिया। तब भगवान ने किसान से कहा कि इन्हें कौन जाने देता है, यह तो चंचला हैं, कहीं नहीं ठहरतीं। इनको बड़े-बड़े नहीं रोक सके। इनको मेरा शाप था इसलिए 12 वर्ष से तुम्हारी सेवा कर रही थीं।

लक्ष्मीजी ने कहा

तुम्हारी 12 वर्ष सेवा का समय पूरा हो चुका है। किसान हठपूर्वक बोला कि नहीं अब मैं लक्ष्मीजी को नहीं जाने दूंगा। तब लक्ष्मीजी ने कहा कि हे किसान तुम मुझे रोकना चाहते हो तो जो मैं कहूं वैसा करो। कल तेरस है। तुम कल घर को लीपपोतकर स्वच्छ करना।

लक्ष्मी जी ने आगे कहा ....

रात्रि में घी का दीपक जलाकर रखना और सायंकाल मेरा पूजन करना और एक तांबे के कलश में रुपए भरकर मेरे लिए रखना, मैं उस कलश में निवास करूंगी। किंतु पूजा के समय मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी।

इस कारण तेरस की दिन होती है लक्ष्मी पूजा


इस एक दिन की पूजा से वर्ष भर मैं तुम्हारे घर से नहीं जाऊंगी। यह कहकर वह दीपकों के प्रकाश के साथ दसों दिशाओं में फैल गईं। अगले दिन किसान ने लक्ष्मीजी के कथानुसार पूजन किया। उसका घर धनधान्य से पूर्ण हो गया। इसी वजह से हर वर्ष तेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा होने लगी।

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